मध्यप्रदेश की  भाषा और बोली (MP Ki Bhasha Aur Boli)

मध्यप्रदेश की मुख्य भाषा हिन्दी है। प्रदेश में हिन्दी का व्यवहार व्यापक रूप से होता है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी का प्रयोग यहाँ गाँव से लगाकर शहर तक सरकारी काम-काज, शिक्षा, पठन-पाठन और सामान्य पत्र व्यवहार में किया जाता है। हिन्दी के साथ अन्य भाषा-भाषी लोग भी मध्यप्रदेश में रहते हैं। जो अपनी-अपनी भाषा बोलते हैं। इनमें उर्दू, मराठी, गुजराती, सिन्धी, पंजाबी, तमिल, तेलगू और मलयालम आदि हैं। मध्यप्रदेश में आदिवासियों की भी बहुलता है, ये भी अपनी-अपनी बोलियाँ बोलते हैं, जिनमें गोंडी, कोरकू, भीली, बोलियाँ प्रमुख हैं। ये आदिवासी- बोलियाँ कहलाती हैं।

मध्यप्रदेश में लोक- बोलियों का एक विस्तृत संसार है। यहाँ प्रमुख चार बोलियाँ बोली जाती हैं-

1.निमाडी

2. मालवी

3. बुन्देली

4. बघेली

निमाड़ी

निमाड़ी मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग पूर्वी निमाड़, पश्चिमी निमाड़ और बड़वानी जिलों में बोली जाती है। इसका प्रसार झाबुआ, धार, देवास, हरदा होशंगाबाद तक माना जाता है। निमाड़ी बोली की वाचिक परम्परा अत्यन्त समृद्ध है। जिसमें निमाड़ी लोकगीतों की संख्या सर्वाधिक है। निमाड़ी में लोककथाओं, लोकगाथाओं, कहावतों और पहेलियों का भी अक्षय भंडार है।

निमाड़ी बोली में साहित्य का सृजन भी पर्याप्त हुआ है। संत सिंगाजी ने निमाड़ी में कई पद लिखे हैं। संत सिंगाजी, कबीरदास के समान निर्गुण-भक्ति-परंपरा के संत थे। आधुनिक कवियों में राजा भाऊ व्यास, गौरीशंकर गौरीश, विद्याधर टेलर, लक्ष्मणसिंह दसौंधी, सुकुमार पगारे, बाबूलाल, प्रभाकर दुबे आदि प्रमुख हैं। निमाड़ी के उन्नायकों में पद्मश्री रामनाराण उपाध्याय का महत्वपूर्ण योगदान है।

मालवी

इन्दौर एवं उज्जैन के आसपास का क्षेत्र मालवा कहलाता है। मालवा क्षेत्र की बोली को मालवी कहते हैं। देवास, उज्जैन और इंदौर मालवी बोली के केन्द्रीय स्थान माने जाते हैं। इस बोली का क्षेत्र रतलाम, इन्दौर, भोपाल, होशंगाबाद, गुना, नीमच, इत्यादि में विकसित है। मालवी की वाचिक परम्परा अत्यन्त समृद्ध है।

मालवी के लोकगीत, लोककथा, गाथा, लोकनाट्य, कहावतें और पहेलियों में उसके माधुर्य और सौन्दर्य को देखा जा सकता है। मालवी में निर्गुण-संत परंपरा के अनेक लोक कवियों ने कई पद रचे हैं। वर्तमान में भी मालवी में साहित्य सृजन किया जा रहा है। मालवी के प्रमुख रचनाकारों में पन्नालाल नायाब, आनंद राव दुबे, गिरधरसिंह, भंवर, बालकवि बैरागी, हरीश निगम आदि प्रमुख हैं। मालवी के उन्नायकों में चिंतामणि उपाध्याय और श्याम परमार का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

बुन्देली

बुन्देलखण्ड अंचल की बोली का नाम बुन्देलखण्डी या बुन्देली है। मध्यप्रदेश की अन्य बोलियों की अपेक्षा बुन्देली का क्षेत्र अधिक व्यापक है। यह उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड और मध्यप्रदेश के समूचे बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। बुन्देली का शुद्ध रूप टीकमगढ़, सागर और नरसिंहपुर जिले में मिलता है। बुन्देली मूलत: शौर्य और श्रृंगार की बोली है। इसकी वाचिक परंपरा यानी मौखिक साहित्य अत्यन्त समृद्ध और विविधवर्णी है। इसमें असंख्य लोकगीत, गाथा, गीत कथा, नाट्य पहेलियों और कहावतों का अक्षय भण्डार है आल्हाखण्ड बुंदेली की जगप्रसिद्ध गाथा है।

बुन्देली बोली रचना की दृष्टि से भी समृद्ध है। बुंदेली चंदेल शासकों के समय से निरंतर विकसित होती रही है। बुंदेली कभी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। इसका प्रमाण हमें बुन्देलखण्ड के नरेशों के ताम्रपत्रों, सनदों और पन्नों में मिलता है। बुन्देली के प्रसिद्ध कवियों में केशव, पद्माकर, लाल कवि, गंगाधर व्यास और ईसुरी हैं। बुन्देली के उन्नायकों में श्यामसुन्दर बादल, शिवसहाय पाठक, कृष्णांनद गुप्त, डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त आदि हैं।

बघेली

बघेलखण्ड में ‘बघेली’ बोली जाती है। यह पूर्वी हिन्दी की एक महत्वपूर्ण बोली है। बघेली अवधी से मिलती-जुलती है। आज से आठ सौ साल पहले व्याघ्रदेव ने बघेलखण्ड की स्थापना और नामकरण किया था। तब से बघेलखण्ड में ‘बघेली’ बोली की नींव पड़ी। बघेली में अवधी, भोजपुरी, बुन्देली और छत्तीसगढ़ी शब्दों का मिश्रित प्रभाव है। विशुद्ध बघेली मध्यप्रदेश के रीवा, सतना, सीधी और शहडोल जिलों में बोली जाती है। बघेली की पारम्पिक लोक-विधाओं में बघेली का स्वरूप समझा जा सकता है। बघेली कवियों में सैफुद्दीन सैफू, बैजनाथ बैजू, शंभू फाकू, सुधाकांत बिलाला, शिवशंकर मिश्र सरस, बाबूलाल दाहिया, रामनरेश तिवारी ‘निष्ठुर’ आदि प्रमुख हैं। बघेली की प्राचीन रचनाओं में महाराज विश्वनाथ सिंह कृत ‘परमधर्म निर्णय’ और ‘विश्वनाथ प्रकाश’ उल्लेखनीय हैं। बघेली के उन्नायकों में लखनप्रताप सिंह, उरगेश, गोमती प्रसाद विकल आदि हैं।

बोली

प्रमुख क्षेत्र

1. निमाड़ी

खण्डवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, धार-झाबुआ, इंदौर,

हरदा, होशंगाबाद आदि ।

2. मालवी

देवास, उज्जैन, इंदौर, नीमच, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, सीहोर,

आदि ।

3. बुन्देली

दतिया, दमोह, सागर, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, विदिशा, रायसेन, नरसिंहपुर, जबलपुर, सिवनी, छिन्दवाड़ा, बालाघाट आदि । रीवा सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया आदि ।

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