प्रधानमंत्री जी का प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए 11 दिन का कठोर व्रत

चूँकि मोदी जी इस समय भारत के प्रधानमंत्री हैं ही वे उस विचारधारा से आते हैं जिसे पारंपरिक विचारधारा कहा जा सकता है। उसे भारत की मूलभूत विचारधारा भी कहा जा सकता है। हम आजकल हमारी संस्कृति का  वर्णन करते हुये विदेशी शब्दों का प्रयोग करते हैं । यह हमारी मानसिक परतंत्रता ही है । कितु मोदी जी जैसे राजनीतिक स्वतंत्रता . के साथ ही सांस्कृतिक ऐतिहासिक वैज्ञानिक एवं सनातन मूल्यों को अपने व्यक्तित्व में प्रतिबिंबित भी करते हैं ।

प्रधानमंत्री मोदी जी ऐतिहासिक राम मंदिर जिसका आज अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से उद्घाटन अथवा तो श्री राम की वहां पर पुनः प्रतिष्ठा की गई है के अवसर पर एक यजमान के रूप में आमंत्रित किए गए थे। यद्यपि वे मुख्य यजमान नहीं थे। और उनके लिए मुख्य यजमान के समान कठोर तप निहित नहीं था किंतु फिर भी उन्होंने नव रात्रि के उपवास की तरह इस प्राण प्रतिष्ठा के महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए अथवा तो यजमान के कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए 11 दिनों तक अन्न जल का त्याग कर दिया। अन्न और जल दोनों ग्रहण नहीं किया इतना ही नहीं वे अपने आप को शुद्ध पवित्र और ऊर्जा से परिपूर्ण करने के लिए भारतवर्ष के अनेक मंदिरों में जाकर दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करते रहे और अंतत उन्होंने अन्य यजमानों साथ, असंख्य गणमान्य व्यक्तियों साधु संतों ऋषियों महर्षियों नेताओं एवं वेद वेदांग शास्त्रों के ज्ञाताओं के साथ मिलकर आज अयोध्या में रामलला के रूप में अर्थात् बाल रूप में भगवान के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का  कार्यक्रम आज संपन्न कर ही दिया।  इसके साथ ही अपने वक्तव्य देने के साथ में ऊर्जा से अत्यंत परिपूर्ण भी दिखे । यह लगता नहीं कि उन्होंने 11 दिनों से अन्न जल ग्रहण नहीं किया है। अभी तो यह उनकी आंतरिक संतुष्टि के परिणाम स्वरूप मिलने वाली ऊर्जा एवं संतोष का प्रभाव ही कहिए कि वह अत्यंत संतुष्ट होकर भाषण भी देते रहे और अपने अनुभवों से विशाल जन समूह को भक्ति भावना से ओत-प्रोत त्प्रोत करते रहे।

उन्होंने खड़े होकर गंभीरता पूर्वक कहा -’मेरा कंठ अवरुद्ध है। मेरा शरीर स्पंदित है। और मैं ऊर्जा से परिपूर्ण अनुभव कर रहा हूं। ‘ जबकि पिछले 11 दिनों से उन्होंने अन्न जल ग्रहण नहीं किया है और अपना राजनैतिक दायित्व का भी वे निरंतर निर्वाह कर रहे हैं। 

उन्होंने कहा की राम जब वन को गए तो वह अयोध्या का विरह केवल 14 वर्ष का था किंतु वर्तमान समय में यह वियोग 500 सालों का हो गया। सदियों तक वह अयोध्या से दूर रहे। संभवत हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई थी इसीलिए वह अयोध्या में उनका पुन: आगमन नहीं हो पाया किंतु मुझे लगता है कि आज उन्होंने हम सबको क्षमा कर दिया होगा क्योंकि आज हम सभी ने मिलकर इस उनके पुन:आगमन को उनकी प्राण प्रतिष्ठा को संभव कर दिया है। यह उत्सव समग्र जन समाज में ऊर्जा का संचार कर रहा है। यह आत्मविश्वास को भर रहा है। यह केवल राम जी की प्राण प्रतिष्ठा नहीं है। यह समग्र भारतीयता की प्रतिष्ठा है। भारतीय समाज के विश्वास की प्रतिष्ठा है। यह नए युग का आरंभ है।

उन्होंने यह भी कहा की महर्षि वाल्मीकि ने कहा है कि 10000 वर्षों तक के लिए राम राज्य प्रतिष्ठित रहा यह हमारे शास्त्रों का लिखित वक्तव्य है।

उनके वक्तव्य के पश्चात वहीऊपर उनके व्रत को समस्त संत समाज से ओमकार कि ध्वनि से सम्मति लेकर पूरा किया गया।