कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 204-205 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit.

पद: 204

काल खड़ा सिर उपरे, जागु बिराने मीत

जाका घर है गैलमे, सो कस सोय निचीत।।1।।

भावार्थ  : 

मोह की निद्रा में सोए हुए लोगों को वे कहते हैं कि हे मित्र! सर पर काल खड़ा है किसी भी समय मृत्यु आ सकती है इसलिए अब परमार्थ को प्राप्त करने के लिए जाग कर प्रयत्न कीजिए। वह कहते हैं कि जिसका घर रास्ते में हो वह निश्चित कैसे सो सकता है अर्थात उसके घर पर कभी भी कोई चोरी आदि  हो सकते हैं इसलिए उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

पद: 205

छाकी परयों आतम मतवारा।

पीवत रामरस करत बिचारा।।

बहुत मोलि मंहगै गुड़ पावा।

लै कसाब रस राम चुवावा।।

तन पाटन मै कीन्ह पसारा।

माँगि-माँगि रस पीवै बिचारा।।

कहै कबीर फाबी मतवारी।

पीवत रामरस लगी खुमारी।।

शब्दार्थ :- कसाव – कषाय रेस । पाटन = पट्टण, शहर ।

भावार्थ :-

छाकी परयों आतम मतवारा।

पीवत रामरस करत बिचारा।।

कबीर दास जी कहते हैं की जिसे आत्मा का अनुभव हो गया है जिसे ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हो गया है वह अपने आप में आनंदित रहकर उसे आनंद से छका हुआ और मतवाला होकर घूमता रहता है। वह जो है लगातार उस राम रस का आस्वादन करते हुए उसे पीते हुए विचरण करते रहता है विचार करते रहता है उसी ब्रह्म के चिंतन में तल्लीन रहता है।

बहुत मोलि मंहगै गुड़ पावा।

लै कसाब रस राम चुवावा।।

वह कहते हैं कि जिस गुण को मैंने खाया है वह बहुत ही महंगा है बड़ा माल देकर मैं उसे लाया हूं और उसी गुड़ के कारण अब मुझे उस राम रस के स्रावित होने का प्राप्त होने का आनंद प्राप्त हुआ है।

तन पाटन मै कीन्ह पसारा।

माँगि-माँगि रस पीवै बिचारा।।

उस राम ने मेरे शरीर में सब और प्रवेश कर लिया है और अब मैं उससे मांग मांग कर रामरस पीता रहता हूं और विचार करता रहता हूं कि मेरे राम धन्य है।

कहै कबीर फाबी मतवारी।

पीवत रामरस लगी खुमारी।।

कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो पैन है यह जो पीने का कार्यक्रम है यह बहुत ही सुख देने वाला है इसे पीकर मैं मतवाला हो गया हूं इस राम रस के पीते रहने से मुझ में खुमारी अथवा तो हमेशा ही चढ़ा रहने वाला सुखद नशा मुझे प्राप्त हो गया है सामान्यतः तो कोई नशा या व्यसन व्यक्ति को नुकसान पहुंचाते हैं किंतु यह राम रस का नशा ऐसा है कि यह व्यक्ति का सभी ओर से कल्याण करने वाला है।