kabir ke pad arth sahit.
पद:169
मीयाँ तुम्हसौ बोल्याँ बणि नहीं आवै।
हम मसकीन खुदाई बन्दे तुम्हरा जस मनि भावै।।
अलह अवलि दीनका साहिब, जोर नहीं फुरमाया।
मुरिसद-पीर तुम्हारै है को, कहौ कहाँथै आया।।
रोजा करै निवाज गुजारै कलमै भिसत न होई।
सतरि काबे इक दिल भीतरि जे करि जानै कोई।।
खसम पिछांनि तरस करि जियमै, माल मनीं करि फीकी।
आया जाँनि साँईकूं जाँनै, तब है भिस्त सरीकी।।
माटी एक भेप धरि नाँनाँ, सबमे ब्रह्म समानाँ।
कहै कबीर भिस्त छिटकाई दिजग ही मनमानाँ।।
मसकीन का हिंदी अर्थ गरीब । दीन । बेचारा
भावार्थ :-
कबीर दास जी मुस्लिमों को संबोधित करते हुए कहते हैं हे मियां! मुझे तुमसे बोलते नहीं आता है कि तुम्हें क्या कहा जाये। तुम कहते हो कि हम दीन हैं और खुदा के बंदे हैं और इस तरह तुम मानते हो तो फिर अल्लाह दीन का साहिब है तो उन्होंने तुम्हें दया करना क्यों नहीं फरमाया? यदि केवल अल्लाह ही एक है तो तुम्हारे मुर्शिद और पीर-फकीर जो तुम्हारे हैं वे कहां से आ गए ? तुम रोजा रखते हो नमाज पढ़ते हो किंतु मन में तुम्हारे जीवो के प्रति दया क्यों नहीं है ? और आप इतनी सी बात क्यों नहीं समझते की सत्य और काबा दिल के भीतर एक ही है और इस प्रकार तुम क्यों जानते नहीं हो।
अपने खसम यानी स्वामी को पहचानो और मन में उसे जानने की प्यास जगाओ और जो माल मिलकर संपत्ति है उसके प्रति अपने मन में फीका पल्लव अर्थात आसक्ति को कम करो।
इस प्रकार जब तुम वास्तविकता को जान लोगे तो तुम ईश्वर को जान लोगे और तुम्हारे मन में यह भेद की दीवार शेष नहीं रहेगी।
जिस प्रकार एक ही मिट्टी से नाना प्रकार के खिलौने अथवा मूर्तियां बनाई जाती है और वेन्नालावे शो को धारण कर लेते हैं उसी प्रकार यह ब्रह्म यह ईश्वर यह निर्गुण राम सभी में समाया हुआ है और सब के बाहर भी है।
कबीरदास जी कहते हैं की आपने भिस्ट अर्थात स्वर्ग या जन्नत और दिजग या दोजग अर्थात नरक की कल्पना मनमाने ढंग से ही कर ली है।(यह अर्थ अनुमानित है।)
✓
- MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 II प्रश्नपत्र व्याख्या सहित हल
- MPPSC- State Engineering Service 2022 – MPPSC
- MPPSC-UNANI MEDICAL-2021- GS-PAPER
- MPPSC- State Engineering Service 2020- GS-PAPER
- MPPSC- State Engineering Service 2021- GS-PAPER