कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 206 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit.

पद: 206

सब दुनी सयानी मैं बौरा,

हम बिगरे बिगरौ जनि औरा।

मैं नहिं बौरा राम कियो बौरा,

सतगुरु जार गयौ भ्रम मोरा।

बिद्या न पढूँ वाद नहिं जाँनूं,

हरि गुण कथत-सुनत बौ बौराँनुं।।

काम-क्रोध दोऊ भये बिकारा,

आपहि आप जरै संसारा।।

मिठो कहा जाहि जो भावे,

दास कबीर रांम गुण गावै।।

भावार्थ :-

सब दुनी सयानी मैं बौरा,

हम बिगरे बिगरौ जनि औरा।

कबीरदास जी कहते हैं कि सारी दुनिया के जो लोग हैं वह समझदार हैं किंतु मैं ही बिगड़ा हुआ हूं पागल हूं। और हमारे साथ जो लोग हैं वह भी बिगड़ गए हैं ।

मैं नहिं बौरा राम कियो बौरा,

सतगुरु जार गयौ भ्रम मोरा।

वह इस बात का कारण बताते हुए कहते हैं कि मैं पागल नहीं हुआ हूं बल्कि मुझे मेरे राम ने पागल किया है मेरे सतगुरु ने मेरे भ्रम को नष्ट कर दिया है और अब मैंने वास्तविकता का अनुभव कर लिया है और संसार के लोग उस वास्तविकता को स्वीकार नहीं करते और उल्टा मुझे ही पागल कहते हैं ऐसा कबीर दास जी का मंतव्य है।

बिद्या न पढूँ वाद नहिं जाँनूं,

हरि गुण कथत-सुनत बौ बौराँनुं।।

वे कहते हैं कि मैं किसी प्रकार की विद्या नहीं पड़ता और नहीं तर्कशास्त्र जानता हूं और ना ही कोई वाद-विवाद करता हूं मैं तो केवल हरि के गुण ईश्वर की यश कीर्ति का बखान करता हुआ उसे सुनता और गाता हूं और उसी में पागल हूं। अर्थात में से कार्य करता हूं यदि आप उसे भी पागलपन कहते हैं तो आप भले कहें मैं कहूंगा हां मैं पागल हूं।

काम-क्रोध दोऊ भये बिकारा,

आपहि आप जरै संसारा।।

काम और क्रोध ऐसे दो विकार हैं जिससे संसार अपने आप ही चलता रहता है शांति को प्राप्त नहीं होता या उन्हें शांति प्राप्त नहीं होती।

मिठो कहा जाहि जो भावे,

दास कबीर रांम गुण गावै।।

संत कबीरदास जी कहते हैं कि यह दास कबीर राम का गुणगान करता है और सबसे मीठे वचन कहता है। जिस तरह से भी मुझे ठीक लगते हैं मैं उन्हें अच्छी तरह से कहने का प्रयास करता हूं।