कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 210 अर्थ सहित

पद संख्या 210

दरस दिवाना बावरा अलमस्त फकीरा । एक अकेला ह्वै रहा अस मत का धीरा ||

हिरदे में महबूब है हर दम का प्याला । पोयेगा कोई जौहरी गुरु मुख मतवाला ||

पियत पियाला प्रेम का सुधरे सब साथी साथी।

आठ पहर झूमत रहै जस मैगल हाथी ||

बंधन काटे मोह के बैठा निश्संका |

वाके नजर न आवता क्या राजा रंका।

धरती का आसन किया तंबू असमाना ।

चोला पहिरा खाक का रह पाक समाना ॥

सेवक को सतगुरु मिले कछु रहि न बाबाही |

कह कबीर निज चलौ जहुँ काल व जाही ॥

शब्दार्थ :-

मैंगल = मदमस्त।

भावार्थ :-

कबीर दास जी कहते हैं कि जब कोई उसे निर्गुण राम को प्राप्त कर लेता है तब वह उसके दरस के लिए दीवाना हो जाता है, बावरा हो जाता है, और वह अपनी मस्ती में झूम उठता है, उसे और कुछ अच्छा नहीं लगता,  एक ईश्वर के इसलिए वह फकीर हो जाता है। कोई शरीर से भी फकीर हो जाता है तो कोई मन से फकीर रहता है। वह जब ईश्वर से एकत्व का अनुभव कर लेता है तो वह जानता है कि जो कुछ देखने सुनने और विचार करने में आ रहा है वह सब ईश्वर है और ईश्वर के सिवा कहीं कुछ भी नहीं है इस प्रकार वह अपने को एक ब्रह्म की तरह देखने लगता है। वह, इसीलिए कहा गया है कि वह एक अकेला होकर रहने लगता है और उसका यही मत हो जाता है कि उस एक के सिवा संसार में और कुछ नहीं है।

हिरदे में महबूब है हर दम का प्याला । पोयेगा कोई जौहरी गुरु मुख मतवाला ||

आगे कबीरदास जी कहते हैं कि वह महबूब वह प्रियतम हृदय में ही है उसे कहीं ढूंढने की आवश्यकता नहीं है और उसके रस को उसके आनंद को किसी भी समय पिया जा सकता है। वह सदा उपलब्ध रहता है। और उस हरिरस को उस प्याले को उस मस्ती के प्याले को कोई बिरला, जो गुरु की बात मानने वाला है, जो गुरु भक्त है, जो सच्चा सिक्ख(शिष्य) है जो गुरु की सच्ची सीख मानने वाला है। ऐसा जो मतवाला है वह सत्य को पहचानने वाला उस घूंट को पीकर संसार में मतवाला होकर इधर-उधर घूमता रहता है । झूमता रहता है। उस प्रेम के प्याले को पीकर सभी साथी सुधर गए हैं अच्छे हो गए हैं यह ऐसा प्याला है जिसको पीकर सभी ओर से कल्याण होने लगता है। जबकि दूसरे व्यसन शराब आदि के पीनेवालो में व्यक्ति का विनाश होने लगता है वह अधोगति में जाने लगता है। 

पियत पियाला प्रेम का सुधरे सब साथी साथी।

आठ पहर झूमत रहै जस मैगल हाथी ||

आगे वे कहते हैं कि प्रेम का यह प्याला पीकर आठों प्रहर अर्थात चौबीसों घऔर वह ज्ञानवान पुरुष निशंक होकर अपने प्रिय जगह पर अपने प्रिय स्थानों पर स्थिर होकर बैठने लगता है उसके दृष्टि में राजा और रंक नहीं आते अर्थात वह अमीरी और गरीबी में बहुत अंतर नहीं मानता उसे ना गरीबी से भय लगता है और राजाओं की समृद्धि के प्रति उसके चित्र में कोई आकर्षण होता है इसीलिए यहां ऐसा कहा गया है कि उसको राजा और रंक नजर नहीं आते और था वह उनसे प्रभावित नहीं होता।

बंधन काटे मोह के बैठा निश्संका |

वाके नजर न आवता क्या राजा रंका।

धरती का आसन किया तंबू असमाना ।

चोला पहिरा खाक का रह पाक समाना ॥

उसे आनंदित रहने के लिए अन्य स्थानों की आवश्यकता नहीं पड़ती वह धरती को ही आसान समझ कर बैठता है और उसके लिए उसके घर की छत अथवा तो तंबू सारा आसमान होता है।

सेवक को सतगुरु मिले कछु रहि न बाबाही |

वे कहते हैं कि ईश्वर के मार्ग पर चलने वाले साधक को जब सच्चे गुरु मिल जाते हैं सद्गुरु मिल जाते हैं तब फिर कुछ भी बाकी नहीं रह जाता क्योंकि एक ईश्वर के प्राप्त होने से सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

कह कबीर निज चलौ जहुँ काल व जाही ॥

कबीर दास जी कहते हैं कि यह भक्तों वहां चलो जहां पर कॉल नहीं जाता है अर्थात हमको अवश्य ही अमर पद की प्राप्ति कर लेनी चाहिए।

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