कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास-सोई उपाय करि यहु दुःख जाई (रमैणी )

।।निरंतर।।

सोई उपाय करि यहु दुःख जाई, 

सोई उपाय करि यहु दुःख जाई, ए सब परहरि बिसैं सगाई ।। 

माया मोह जरैं जग आगी, ता संगि जरसि कवन रस लागी ।। 

त्राहि-त्राहि करि हरी पुकारा, साधु संगति मिलिब करहुं बिचारा ।। 

रे रे जीवन नहीं विश्रामाँ, सब दुःख खंडन रॉम को नाँमाँ ।। 

राम नाम संसार मैं सारा, राम नाम भौ तारन हारा।।

सुम्रित बेद सबै सुनै, नहीं आवै कृत काज ।।

नहीं जैसे कुंडिल वनित मुख, मुख सोभित विन राज ।।

व्याख्या-

सोई उपाय करि यहु दुःख जाई, ए सब परहरि बिसैं सगाई ।। 

माया मोह जरैं जग आगी, ता संगि जरसि कवन रस लागी ।। 

अब मनुष्य तुझे ऐसे ही उपाय करने चाहिए जिससे यह संसार का जन्म मरण रूपी दुख समाप्त हो जाए सभी प्रकार के दुख समाप्त हो जाए किंतु यह सब छोड़कर तूने अपना संबंधी विषयों से जोड़ लिया है और उन्हीं से सगाई कर ली है। इस संसार में माया और मोह रूपी अग्नि जल रही है और उसके संग में तुझे जलने में किस प्रकार का रस आ रहा है यह समझ में नहीं आता अर्थात बड़ा आश्चर्य है कि तुझे जलने में अच्छा लग रहा है।

त्राहि-त्राहि करि हरी पुकारा, साधु संगति मिलिब करहुं बिचारा ।। 

रे रे जीवन नहीं विश्रामाँ, सब दुःख खंडन राम को नाँमाँ ।।

मेरी रक्षा करो मेरी रक्षा करो हे प्रभु मेरी रक्षा करो इस प्रकार से तुझे पुकारना चाहिए प्रार्थना करनी चाहिए और साधुओं का संग कर कर तुझे तत्व का विचार करना चाहिए। हे प्राणी इस जीवन में किसी प्रकार का विश्राम नहीं है यदि तुझे इस थकान से मुक्ति पानी है दुखों को दूर करना है तो सभी दुखों को नष्ट करने के लिए यह राम का नाम ही समर्थ है।

राम नाम संसार मैं सारा, राम नाम भौ तारन हारा।।

सुम्रित बेद सबै सुनै, नहीं आवै कृत काज ।।

नहीं जैसे कुंडिल वनित मुख, मुख सोभित विन राज ।।

यह राम नाम ही संसार का सार है और यह राम नाम ही है जो इस भवसागर से तार देने वाला है। सभी स्मृतियां और वेद सुनकर देख लोग कुछ काम नहीं आने वाले हैं। जिस प्रकार किसी किसी स्त्री का मुख सौभाग्य स्वरूप धारण करने वाले आभूषणों कुंडल आदि के बिना शोभा नहीं पाता। उसी प्रकार बिना आत्म स्वरूप को प्राप्त किए प्राणी शोभा नहीं पाता।

 विशेष  :-

इस रमैंणीमें वासनाओं के त्याग राम-नाम स्मरण की महत्ता पर बल दिया गया है। 

।।निरंतर।।

अब गहि राम-नाम अविनासी, 

अब गहि राम-नाम अविनासी, हरि तजि जिनि कतहूँ के जासी।। 

जहाँ जाइ तहाँ तहाँ पतंगा, अब जिनि जहरि संमझि बिष संगा ।। 

चोखा राम नाम मनि लीन्हा, भिंग्री कीट भ्यंग नहीं कीन्हा । । 

भौसागर अति वार न पारा, ता तिरबे का करहु बिचारा ।। 

मनि भावै अति लहरि बिकारा, नहीं गमि सूझै वार न पारा ।। 

भौंसागर अथाह जल, तामैं बोहिथ राम अधार ।। 

कहैं कबीर हम हरि सरन, तब गोपद खुर बिस्तार । । ६ । ।

शब्दार्थ – 

चोखा = सुन्दर ।

व्याख्या –

अब गहि राम-नाम अविनासी, हरि तजि जिनि कतहूँ के जासी।। 

कबीरदास जी कहते हैं कि अब हमने उस अविनाशी राम नाम को ग्रहण कर लिया है तो फिर अब उस हरि को त्याग कर हम किस स्थान को और कहां जाएंगे। अर्थात हम कहीं नहीं जाएंगे।

जहाँ जाइ तहाँ तहाँ पतंगा, अब जिनि जहरि संमझि बिष संगा ।। 

जिस प्रकार दीपक के जलने पर बहुत सारे पतंगा या उड़ने वाले किट उस में आकर जलते रहते हैं उसी प्रकार इस संसार में भी सब ओर इसी प्रकार की स्थिति प्राणियों के लिए रहती है और अब हमने उन्हें विष समझकर त्याग दिया है और ईश्वर का ही संग कर लिया है।

चोखा राम नाम मनि लीन्हा, भिंग्री कीट भ्यंग नहीं कीन्हा । । 

भौसागर अति वार न पारा, ता तिरबे का करहु बिचारा ।। 

हमने शुद्ध और पवित्र राम नाम को या राम नाम की मणि को ले लिया है और जिस प्रकार कोई कीड़ा भ्रमर का ध्यान करते करते भ्रमर हो जाता है उसी प्रकार हम ईश्वर का ध्यान करते-करते ईश्वर का स्वरूप हो गए हैं और वह ईश्वर अब हमसे हमें उससे अलग नहीं करेगा। हम उससे एकरूप हो गए हैं।

यह भवसागर अत्यंत विस्तृत है और इसकी सीमा दिखाई नहीं देती और प्राणी को अथवा मनुष्य को इसे पार करने के लिए विचार करना चाहिए।

मनि भावै अति लहरि बिकारा, नहीं गमि सूझै वार न पारा ।। 

भौंसागर अथाह जल, तामैं बोहिथ राम अधार ।। 

कहैं कबीर हम हरि सरन, तब गोपद खुर बिस्तार । । ६ । ।

जिस प्रकार समुद्र में लहरें उठती हैं इस प्रकार इस संसार में विकारों की लहर मन को बहुत भाती है बहुत अच्छी लगती है और वह इस प्रकार की लहरों में डूब कर इस संसार सागर को पार करने का विचार नहीं करते उन्हें विवेक प्राप्त नहीं होता।

कबीर दास जी कहते हैं कि इस भवसागर में अथाह जल राशि है और इस अथाह जल राशि में राम रूपी जहाज या तो साधन के आधार पर ही हम इसके पर जा सकते हैं। वह कहते हैं कि हमने ईश्वर की शरण ग्रहण कर ली है अर्थात उसके अनुभव की ओर आ गए हैं तो हमारे लिए इस संसार सागर को पार करना उतना ही कठिन है या सरल है जितना गाय के पद यानी गाय का पद यानी खुर तो खुर से जो चिन्ह बनता है उसे पार करना कितना सरल होता है उतना ही सरल हो गया है हमारे लिए इस संसार से पार जाना।

विशेष :-

भौसागर … विस्तार – सॉंग रूपक अलंकार राम-नाम मनि – रूपक अलंकार है।

द्वारा : एम. के. धुर्वे, सहायक प्राध्यापक, हिंदी