अपनी भाषा अपने शब्द

Our Languages Our Words Please Aware about ourselves in india.

यदि आप भारतीय होने पर गर्व की अनुभूति करते हैं और भारतीयता को उज्जवलता के साथ प्रतिष्ठित देखना चाहते हैं, तो अवश्य ही आपको भारतीय मूल की शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि भाषा और संस्कृति एक दूसरे में समाहित होती हैं, और एक के नष्ट हो जाने के कारण प्राणहीन हो जाने के कारण दूसरे का अपने आप अंत हो जाता है। इन दोनों का अस्तित्व शरीर और प्राणों की एकता जैसा है। यदि शरीर से प्राण निकल जाए तो शरीर नष्ट हो जाता है, और शरीर के नष्ट हो जाने से प्राण फिर रह नहीं पाते। इस प्रकार का संबंध भाषा और संस्कृति में है। अतः यदि आप गैर भारतीय भाषाओं के शब्दों का ही अधिकाधिक प्रयोग करते हैं तो इससे यह प्रदर्शित होता है कि आपके भीतर गैर भारतीयता भारतीयता की अपेक्षा श्रेष्ठ स्थान पर स्थापित है । और आप भारतीयता की अपेक्षा गैर भारतीयता को अधिक मूल्य दे रहे हैं। धीरे-धीरे यह आपकी मानसिकता को भारतीयता के प्रतिकूल बना देगा और आप भारतीय होते हुए भी भारतीयता के शत्रु हो जाएंगे।

संसार के ऐसे देश जिन्होंने विदेशी भाषाओं को अपनाया है, उनकी संस्कृति नष्ट हो गई है उनकी सभ्यता नष्ट हो गई है और सभ्यता और संस्कृति के नष्ट हो जाने के बाद उनका अस्तित्व भी नष्ट हो गया है। आप संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों की स्थिति को देख सकते हैं वहां पर उनका अब जैसे नामोनिशान ही मिट सा गया है। वही स्थिति कनाडा की है, वही स्थिति ऑस्ट्रेलिया की है। यह हमारा परम सौभाग्य है कि अंग्रेजो के और मुगलों के इतने वर्षों के शासनकाल के उपरांत भी हमारे पूर्वजों ने उनके मूल्यों को उनके सांस्कृतिक मूल्यों को अक्षुण्ण बनाए रखा और आज हम वह देख पा रहे हैं जो उन्होंने हमारे लिए संभाल कर रखा है। और आने वाली पीढ़ियों को प्रदान किया है। हमारा भी यह कर्तव्य है कि हम भी आने वाली पीढ़ियों को अपना यह अनमोल खजाना जो समग्र संसार के कल्याण के लिए एकमात्र आश्रय है प्रदान करते जाएं। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि संसार से यदि हिंदुत्व मिट गया तो सत्य प्रेम और परोपकार भी इस संसार से मिट जाएगा, उनके इन शब्दों को आप दूसरे अब्राहम और पाश्चात्य धर्मों में देख सकते हैं। उनमें किसी भी प्रकार की उपासना पद्धति का अभाव है उन धर्मों में सत्य को सर्वश्रेष्ठता प्रदान नहीं की गई है। वे व्यक्ति को महत्व नहीं देते उनके सारे क्रियाकलाप व्यक्ति को महत्व देकर आगे नहीं बढ़ते बल्कि वह जिस भी गॉड को या अल्लाह को मानते हैं वह उसके प्रति समर्पित रहते हैं और उसके लिए वह समग्र मानवता का बलिदान कर सकते हैं‌, और कर रहे हैं।  किंतु भारतीय परिप्रेक्ष्य में मानव कल्याण सर्वोपरि है और उसकी इस जन्म मरण के चक्र से संसार से मुक्ति के हेतु ही सारे उपाय कहे गए हैं।

हम सभी यदि अध्यात्म की इन अच्छी और श्रेष्ठ बातों को न समझ सकें, तो कम से कम हमें यह तो समझना चाहिए की जो लोकतांत्रिक स्वतंत्रता है जो लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा है वह केवल भारतीय जनमानस के मूल्यों में समाहित है। और सच्चा लोकतंत्र भारतीय जनजीवन में देखा जाता है। पाश्चात्य से आया हुआ लोकतंत्र हमारे लिए खिलौना जैसा है। हमारे यहां पर तो प्राणी मात्र के कल्याण की भावना की जाती है। सर्वे भवंतु सुखिनः की भावना की जाती है। हम किसी को कष्ट पहुंचा कर या किसी को हराकर अपनी सफलता का उत्सव नहीं मनाते, बल्कि हम लोगों का भला करके, लोगों का कल्याण करके और अपना भी उसमें कल्याण देखते हुए सफलता के पर्व को मनाते हैं।

ऐसे शब्द जो आपको सांस्कृतिक रूप से विचलित कर देते हैं उन शब्दों का आप प्रयोग न ही करें तो बेहतर, क्योंकि आपके ही शब्दों को सुनकर आपकी आने वाली पीढ़ियां आपके बच्चे आपका समाज सीखता है और फिर वह उन्हीं शब्दों के अर्थों उन्हीं शब्दों के मूल्यों को गैर भारतीय संस्कृतियों से आयातित करके और स्वयं एक्सपोर्ट हो जाता है। कृपया इस धर्म संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों को इंपोर्ट न करें अन्यथा आपकी आने वाली पीढ़ियां एक्सपोर्ट हो जाएंगी। अर्थात् यहां पर जो संस्कृति है हमारी संस्कृति उत्तम संस्कृति वह बचेगी ही नहीं। जो दूसरों के खेल खेलता है,  उसकी जीत की संभावना कभी नहीं होती। अतः आपकी विजय के उसमें कोई चांसेस नहीं हैं अतः आप उस खेल को खेलो जिसमें आपको महारत हासिल है जिसमें आपका सतत अभ्यास है।

जो दूसरों की भाषा बोलता है उसके भीतर भला आत्मविश्वास कहाँ से आएगा वह श्रेष्ठता कैसे प्राप्त करेगा ? वह तो स्वयं ही दूसरों पर आश्रित रहेगा। अतः आपके शब्द, आपका व्यक्तित्व, आपकी शैली, आपकी अपनी होनी चाहिए। जो भौगोलिक दृष्टि से, सांस्कृतिक दृष्टि से, ऐतिहासिक दृष्टि से, लाखों वर्षों से हमारा पालन पोषण और रक्षण कर रहे हैं ऐसे सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना हम सब का कर्तव्य है।