Hindi Vyakarana me Samas
समास (Samas )
समास क्या है?
(What is Samas in Hindi)
समास का तात्पर्य होता है – संक्षिप्तीकरण। ‘संक्षिप्तिकरण’ को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में समास संक्षेप करने की एक प्रक्रिया है। दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा कारक चिह्नों का लोप होने पर उन दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल से बने एक स्वतन्त्र शब्द को समास कहते हैं।
उदाहरणार्थ –
- राजा का पुत्र- राज पुत्र (‘कारक’ चिह्न ‘का’ का लोप हो गया)
- मूर्ति बनाने वाला – मूर्तिकार (‘कारक’ चिह्न वाला का लोप हो गया))
- कमल के समान चरण -चरण कमल (‘कारक’ चिह्न ‘के’ का लोप हो गया))
- घोड़े पर सवार – घुड़सवार
- दया का सागर – दयासागर।
- राधा और कृष्ण = राधाकृष्ण (राधाकृष्ण शब्द में ‘कारक’ चिह्न का लोप हो गया)
- राजा की माता = राजमाता (राजमाता शब्द में ‘कारक’ चिह्न का लोप हो गया)
- ‘समास’ का विलोम ‘व्यास’ होता है, और व्यास का शाब्दिक अर्थ विस्तार है।
उदाहरण में ‘दया’ और ‘सागर’ इन दो शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले ‘का’ प्रत्यय का लोप होकर एक स्वतन्त्र शब्द बना ‘दयासागर’।
ध्यान देने योग्य बातें- ‘समास’ में पदों का मेल होता है।
‘संधि’ में ध्वनियों और वर्णों का मेल होता है।
‘संयोजक’ में सीधे-सीधे जुड़ जाते है।
समास विग्रह- समस्त पदों को खंडित कर, पदों को अलग-अलग करने की क्रिया ‘समास विग्रह’ कहलाती है। जैसे- सूर्यपुत्र = सूर्य का पुत्र (समास विग्रह है)
समास की उपयोगिता: कम शब्दों में अधिक से अधिक बातें कहने के लिए समास का प्रयोग किया जाता है।
सामासिक शब्द – Compound Word
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाते हैं। इन्हें समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह लुप्त हो जाते हैं।
जैसे –
- रसोई के लिए घर = रसोईघर
- हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
- नील और कमल = नीलकमल
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
समास के कितने भेद होते हैं?
समास के प्रकार (Types of Samas in Hindi Grammar)
समास के मुख्यतः छः भेद माने जाते हैं –
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद्व समास और,
- बहुब्रीहि समास
1. द्वन्द्व समास (Dwandwa Samas)
सामान्यतः द्वंद्व का अर्थ प्रतिस्पर्धा होता है उसी प्रकार समास में दोनों शब्द पूर्व पद और उत्तर पद सामान्यतःपरस्पर द्वंद को व्यक्त करते हैं इसीलिए इसे द्वंद्व समास कहते हैं।
परिभाषा-जिस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हों अर्थात् अर्थ की दृष्टि से दोनों का स्वतन्त्र अस्तित्व हो और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप हो तो द्वन्द्व समास कहलाता है;
जिस समास का दोनों पद प्रधान हो, तथा विग्रह करने पर ‘और’ ‘एवं’ ‘अथवा’ ‘या’ में से किसी एक का लोप हो जाये उसे द्वंद्व समास कहते है।
जैसे –
समस्त पद | विग्रह |
माता-पिता | माता और पिता |
राम-कृष्ण | राम और कृष्ण |
भाई-बहन | भाई और बहन |
पाप-पुण्य | पाप और पुण्य |
सुख-दुःख | सुख और दुःख |
* द्वंद्व समास के समस्त पद में दोनों पद योजक चिह्न से जुड़े रहते हैं।
* इसमें दोनों पद प्रधान होते है ।
* प्रत्येक दो पदों के बीच और, एवं, या, अथवा में से किसी एक का लोप पाया जाता है।
* विग्रह करने पर दोनों शब्दों के ‘बीच’ अथवा ‘या’ आदि शब्द लिख दिया जाता है।
द्वंद्व समास के तीन उपभेद हैं-
इत्येत्तर द्वंद्व, समाहार द्वंद्व व वैकल्पिक द्वंद्व।
इत्येत्तर द्वंद्व समास –
इत्येत्तर द्वंद्व समास में सभी पद प्रधान होते हैं प्रत्येक दो पदों के बीच ‘और’ का लोप हो जाता है.
उदहारण:
- सूर सागर – सूर और सागर
- ज्ञानविज्ञान – ज्ञान और विज्ञान
- आगपानी – आग और पानी
- गुणदोष – गुण और दोष
- अन्नजल – अन्न और जल
- आगेपीछे – आगे और पीछे
- नरनारी – नर और नारी
- लोटाडोरी – लोटा और डोरी
- तिरसठ – तीन और साठ
- शास्त्रास्त्र – शास्त्र और अस्त्र
नोट: इत्येत्तर द्वंद्व समास में ऐसे संख्यावाची शब्दों का प्रयोग होता है।
1 से 10 तथा 10 से भाज्य संख्याओं (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100) को छोड़कर अन्य समस्त संख्यावाची शब्दों को द्वंद्व समास माना जाता है, क्योंकि इनमे दो संख्याओं का मेल होता है।
उदाहरण:
- पच्चीस – पाँच और बीस
- इक्यानबे – एक और नब्बे
- इकतालीस – एक और चालीस
- तिरसठ – तीन और साठ
समाहार द्वंद्व समास –
जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हो और दोनों पद बहुवचन में प्रयुक्त हो उसे समाहार द्वंद्व समास कहते है। इसके विग्रह के अंत में आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
- दाल रोटी – दाल, रोटी आदि
- चाय पानी – चाय, पानी आदि
- कपड़ा लत्ता – कपड़ा, लत्ता आदि
- साग पात – साग, पात आदि
- धन दौलत – धन, दौलत आदि
- पेड़ पौधे – पेड़, पौधे आदि
वैकल्पिक द्वंद्व समास-
जिस समास पद में दो विरोधी शब्द का प्रयोग हो और प्रत्येक दो पदों के बीच ‘या’ ‘अथवा’ में से किसी एक का लोप हो जाए, उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं।
उदाहरण:
- ठंडा गर्म – ठंडा या गर्म
- पाप पुण्य – पाप या पुण्य
- ऊँच नीच – ऊँच या नीच
- आजकल – आज या काल
- जीवन मरण – जीवन या मरण
- सुरासुर – सुर या असुर
2. द्विगु समास (Dwigu Samas)
जिस समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो, द्विगु समास कहलाता है।
जैसे-
- नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
- सप्तदीप = सात दीपों का समूह
- त्रिभुवन = तीन भुवनों का समूह
- सतमंजिल = सात मंजिलों का समूह
परिभाषा– वह समास जिसका पहला पद यानी पूर्व पद कोई संख्यावाची शब्द तथा उत्तर पद संज्ञा शब्द हो तथा सम्पूर्ण सामासिक पद का कोई अन्य अर्थ अभिव्यक्त नहीं हो उसे द्विगु समास कहते है।
द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं। इससे जहाँ समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे- चौराहा = चार राहों का समाहार ( चौराहा का कोई अन्य अर्थ नहीं निकल रहा है। अतः द्विगु समास है।)
‘द्विगु’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है। ‘दो गायों का समूह’ अतः द्विगु शब्द में द्विगु समास ही है।
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
- चतुष्पदी = चार पदों का समाहार
- अठन्नी = आठ आनों का समाहार
- चौराहा = चार राहों का समाहार
- तिराहा = तीन राहों का समाहार
- दोराहा = दो राहों का समाहार
- अष्टधातु = अष्ट धातुओं का समाहार
- पंचभुज = पाँच भुजाओं का समाहार
- इकट्ठा = एक स्थान पर स्थित
- इकलौता = एक ही है जो
- अठवारा = आठ बार या आठ दिनों तक लगने वाला बाजार
- नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
- दोपहर = दो पहरों का समाहार
- त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
- पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
- त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार
- शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
- पंसेरी = पांच सेरों का समूह
- सतसई = सात सौ पदों का समूह
- चौगुनी = चार गुनी
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
- शतक = शत संख्याओं का समाहार
- दशक =दस वर्षों का समाहार
- शताब्दी = शत अब्दों का (वर्षों) का समाहार
- सहस्त्राब्दी = सहस्त्र अब्दों का का समाहार
- दुधारी = दो धारों से युक्त
- दुमट = दो प्रकार की मिट्टी
- दोगुना = दो बार गुना
- दुअन्नी = दो आनों का समाहार
- दुमंजिला = दो मंजिलों से युक्त
- नवग्रह = नव ग्रहों का समूह
- पंसेरी = पाँच सेरों का समाहार
- दुपट्टा = दो पाट वाला
- सप्ताह = सप्त अहनों का समाहार
- दोलड़ा = दो लड़ियों से युक्त
- सप्तपदी = सप्त पदों का समाहार
- सतसई = सात सौ पदों का समाहार
- सप्तशती = सप्त शत पदों का समाहार
- चौगुना = चार बार गुणा
- नौगाँव = नौ गाँव का समूह
- नौलखा = नौ लाख रूपये के मूल्य का
- षड्गुण = षट् गुणों का समूह
- षडरस = षट् रसों का समाहार
- सप्तसिंधु = सप्त सिन्धुओं का समूह
- सतमासा = सात मासों का समूह
- पंचमुख = पाँच मुखों का समूह
- नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
- पंचरात्र = पाँच रात्रियों का समूह
नोट: निम्नलिखित शब्दों में द्विगु और बहुब्रीहि दोनों समास है, यदि विकल्प में दोनों हो तो इन्हें बहुब्रीहि समास ही माना जाएगा।
- अष्टाध्यायी = पाणिनि की रचना
- तिरंगा = भारतीय ध्वज
- नवरात्र = वे नव रात्रियाँ जिनमे दुर्गा की उपासना होती है
- पंचांग = कलेंडर
- चौपाया = पशु
- चारपाई = खाट / खट्वा
- चौपाई = एक छंद का नाम है
- चौपाई = एक छंद का नाम
- पंचतंत्र = विष्णुशर्मा की कहानियाँ
- त्रिफला = आँवला हरड बहेरा
- पंचगव्य = गाय का दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र
- पंचामृत = गाय का दूध, दही, घी, शक्कर, शहद
- पंजाब = भारत का एक राज्य
- छमाही = मृत्यु के छह माह बाद की जाने वाली क्रिया
- चतुर्भुज = विष्णु
- अष्टभुजा = दुर्गा
- चौमासा = वर्षा के चार माह का समय
- चौपाल = गाँव के मध्य की जगह
- दुकान = भण्डार गृह
- त्रिगुण = सत, रज, तम
- त्रिताप = दैहिक, दैविक, भौतिक
- चतुर्पुरुषार्थ = धर्म, अर्थ, काम’ मोक्ष
- चतुर्वर्ग = ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र
- चौकन्ना = सावधान
प्रश्न -द्विगु समास के कितने भेद हैं?
द्विगु समास के भेद (Dvigu samas ke bhed)
- समाहारद्विगु समास
- उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
समाहारद्विगु समास (Samahar Dwigu Samas)
समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।
जैसे :
- तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
- पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
- तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास (Uttar-Pad-Pradhan Dwigu Samas)
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
1. बेटा या फिर उत्पन्न के अर्थ में। जैसे :-
- दो माँ का =दुमाता
- दो सूतों के मेल का = दुसूती।
2. जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है। जैसे :
- पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
- पांच हत्थड = पंचहत्थड
3. तत्पुरुष समास (Tatpurusha Samas)
गौण शब्द का अर्थ होता है कि जिसका सामान्य अर्थ हो या जिसमें सामान्य गुण हो।
संस्कृत शब्दावली में तत् का अर्थ होता है वह अर्थात यहां पर वह दूसरा पद ही प्रधान होता है इसीलिए इसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
परसर्ग – ये वे अक्षर हैं जो किसी शब्द के बाद आते हैं और कोई विशेषता लाते हैं। जैसे – का, की, रे, ने, द्वारा, से आदि।
कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक कहते हैं।
परिभाषा– जिस समास में पूर्वपद गौण तथा उत्तरपद प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । दोनों पदों के बीच परसर्ग का लोप रहता है।
जैसे-
- धर्मग्रंथ = धर्म का ग्रंथ
- राजकुमार = राज का कुमार
- तुलसीदास द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
तत्पुरुष समास में जिस ‘कारक’ विभक्ति का लोप हो जातग है, समस्त पद को भी उसी नाम से पुकारा जाता है।
इस समास में लगने वाले कारक चिह्नों – को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि का लोप हो जाता है।
वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने के कारण कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं।
प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने प्रकार होते हैं?
इस प्रकार परसर्ग लोप के आधार पर तत्पुरुष समास के छ: भेद हैं –
(i) कर्म तत्पुरुष समास :
जहां कर्म कारक (‘को’ का लोप हो) जैसे-
- मतदाता = मत को देने वाला
- गिरहकट = गिरह को काटने वाला
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- वनगमन =वन को गमन
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
(ii) करण तत्पुरुष समास :
जहाँ करण-कारक चिह्न(से) का लोप हो; जैसे-
- जन्मजात = जन्म से उत्पन्न
- मुँहमाँगा = मुँह से माँगा
- गुणहीन = गुणों से हीन
- स्वरचित =स्व द्वारा रचित
- मनचाहा = मन से चाहा
- शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
- भुखमरी = भूख से मरी
- धनहीन = धन से हीन
- बाणाहत = बाण से आहत
- ज्वरग्रस्त =ज्वर से ग्रस्त
- मदांध =मद से अँधा
- रसभरा =रस से भरा
- भयाकुल = भय से आकुल
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष समास :
जहाँ सम्प्रदान कारक चिह्न(के लिये) का लोप हो; जैसे-
- हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
- सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
- युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
- विद्यालय =विद्या के लिए आलय
- रसोईघर = रसोई के लिए घर
- सभाभवन = सभा के लिए भवन
- विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
- देवालय = देव के लिए आलय
- गौशाला = गौ के लिए शाला
(iv) अपादान तत्पुरुष समास :
जहाँ अपादान कारक चिह्न(‘से’ का लोप हो और यह अलगाव के तारतम्य में हो तभी) का लोप हो; जैसे-
- धनहीन = धन से हीन (यहां धन किसी व्यक्ति से दूर हो रहा है अतः अपादान तत्पुरुष समास है)
- भयभीत = भय से भीत
- जन्मान्ध = जन्म से अन्धा
- कामचोर = काम से जी चुराने वाला
- दूरागत =दूर से आगत
- रणविमुख = रण से विमुख
- नेत्रहीन = नेत्र से हीन
- पापमुक्त = पाप से मुक्त
- देशनिकाला = देश से निकाला
- पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
- पदच्युत =पद से च्युत
- जन्मरोगी = जन्म से रोगी
- रोगमुक्त = रोग से मुक्त
(v) सम्बन्ध तत्पुरुष समास :
जहाँ सम्बन्ध कारक चिह्न (का) का लोप हो; जैसे
- प्रेमसागर = प्रेम का सागर
- दिनचर्या = दिन की चर्या
- भारतरत्न = भारत का रत्न
- राजपुत्र = राजा का पुत्र
- गंगाजल =गंगा का जल
- लोकतंत्र = लोक का तंत्र
- दुर्वादल =दुर्व का दल
- देवपूजा = देव की पूजा
- आमवृक्ष = आम का वृक्ष
- राजकुमारी = राज की कुमारी
- जलधारा = जल की धारा
- राजनीति = राजा की नीति
- सुखयोग = सुख का योग
- मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
- श्रधकण = श्रधा के कण
- शिवालय = शिव का आलय
- देशरक्षा = देश की रक्षा
- सीमारेखा = सीमा की रेखा
(vi) अधिकरण तत्पुरुष समास :
अधिकरण का शाब्दिक अर्थ है जो आधारभूत हो, जो मूल रूप से विद्यमान हो, जिसके आधार पर कुछ कार्य संपन्न हो रहे हों, वह धरा के समान आश्रय देने वाला हो, उसे ही अधिकरण कहते हैं। ऐसा माध्यम जो किसी अस्तित्व को, या क्रिया को मूल आधार प्रदान कर रहा हो वही अधिकरण है।
जहाँ अधिकरण कारक चिह्न (में) का लोप हो; जैसे-
- नीतिनिपुण = नीति में निपुण
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- घुड़सवार = घोड़े पर सवार
- कार्य कुशल =कार्य में कुशल
- वनवास =वन में वास
- ईश्वरभक्ति = ईश्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दीनदयाल = दीनों पर दयाल
- दानवीर = दान देने में वीर
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- जलमग्न =जल में मग्न
- सिरदर्द = सिर में दर्द
- कलाकुशल = कला में कुशल
- शरणागत = शरण में आगत
- आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
- आपबीती =आप पर बीती
तत्पुरुष समास के उपभेद (Tatpurusha Samas ke Upbhed)
- नञ् तत्पुरुष समास
- उपपद तत्पुरुष समास
- लुप्तपद तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास
ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा इत्यादि।
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है।जैसे –
- दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
- ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
- पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि।
नञ तत्पुरुष समास (Najnya Samas in Hindi)
इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं।
नञ् तत्पुरुष समास के उदाहरण (Nav tatpurush samas ke udaharn):
- असभ्य =न सभ्य
- अनादि =न आदि
- असंभव =न संभव
- अनंत = न अंत
4. कर्मधारय समास
विशेषण का अर्थ है कि जो विशेषता बताता है और विशेष्य का अर्थ है कि जिसकी विशेषता बताई जा रही हो वह।
जिस समास में पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है। इसमें भी उत्तरपद प्रधान होता है; जैसे
- कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
- नीलकमल = नीला है जो कमल
- पीताम्बर = पीत (पीला) है जो अम्बर
- चन्द्रमुखी = चन्द्र के समान मुख वाली
- सद्गुण = सद् हैं जो गुण
- चरणकमल = कमल के समान चरण
- नीलगगन =नीला है जो गगन
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- पीताम्बर =पीत है जो अम्बर
- महात्मा =महान है जो आत्मा
- लालमणि = लाल है जो मणि
- महादेव = महान है जो देव
- देहलता = देह रूपी लता
- नवयुवक = नव है जो युवक
यहां पर काली मिर्च में मिर्च की प्रधानता है काली होना या हरी होना या लाल होना उसका मुख्य गुण नहीं है इसलिए यह कर्मधारय समास है। इसमें पूर्व पद अर्थात काली मिर्च की विशेषता को बताने वाला है इसलिए वह विशेषण है और मिर्च विशेष्य है।
परिभाषा– वह समास जिसके पदों में विशेष विशेषण अथवा उपमेय उपमान का संबंध हो तथा संपूर्ण सामासिक पद का कोई अन्य अर्थ अभिव्यक्त नहीं हो, उसे कर्मधारय समास कहते है।
- विशेष्य- जिसकी विशेषता बताई जाए।
- विशेषण- जो किसी की विशेषता बताए उसे विशेषण कहते है। जैसे- नीलकमल = नीला (विशेषण) कमल (विशेष्य)
- उपमेय – जिसकी समानता बताई जाए वह उपमेय होगा।
- उपमान – जिससे समानता बताई जाए वहा उपमान होगा। जैसे – चरणकमल अथार्त ‘कमल रूपी चरण’ यहाँ- कमल ‘उपमान’ है और चरण ‘उपमेय’ है।
नोट: कर्मधारय समास तत्पुरुष समास का ही भेद है। अतः इसका उत्तर पद प्रधान होता है।
उदाहरण:
- अधमरा = अध है जो मरा
- अल्पेछा = अल्प है जो इच्छा
- कदाचार = कुत्सित है आचार जो
- कमतोल = काम तोलता है जो
- कृष्णसर्प = कृष्ण है जो सर्प
- कुलक्षण = कु है जो लक्षण
- कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
- खुशबू = खुश (अच्छी) है जो बू (गंध)
- तलधर = तल में है जो घर
- गतांक = गत है जो अंक
- कोमलांगी = कोमल अंगों वाली है जो
- तीव्रदृष्टि = तीव्र है जो दृष्टि
- दीर्घजीवी = दीर्घ अवधी तक जीवित रहता है जो
- नवागंतुक = नव है जो आगतुक
- परमात्मा = परम है जो आत्मा
- परमाणु = परम है जो अणु
- परमायु = परम है जिसकी आयु
- दुराचार = दूर है जो आचार
- सुपाच्य = सु है पाच्य जो
- सुलभ्य = सु है जो लभ्य
- हीनार्थ = हीन है अर्थ जो
- बड़ाघर = बड़ा है जो घर
- शुभ्रवर्ण = शुभ्र है जो वर्ण
- सुदर्शन = सू है दर्शन जिसके
- मंदबुद्धि = मंद है बुद्धि जिसके
- महर्षि = महान है जो ऋषि
- रक्तकमल = रक्त के समान लाल है जो कमल
- सज्जन = सत्य है जो जन
- दुर्जन = दुर् है जो जन
- बहुमूल्य = बहुत है मूल्य जिसका
- महाराज = महान है जो राजा
- महाभोज = महान है जो भोज
- मीनाक्षी = मीन के सामान है आँख जिसकी
- श्यामपट = श्याम है जो पट
- शतपथ = सत्य है जो पथ
कर्मधारय समास के भेद (KarmaDharaya Samas ke Bhed)
- विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
- विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास:
जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है। जैसे :-
- नीलीगाय = नीलगाय
- पीत अम्बर =पीताम्बर
- प्रिय सखा = प्रियसखा
विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास
इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं। जैसे :
- कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास –
इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं। जैसे :
- नील – पीत
- सुनी – अनसुनी
- कहनी – अनकहनी
विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
इसमें दोनों पद विशेष्य होते है। जैसे :-
- आमगाछ ,वायस-दम्पति।
कर्मधारय समास के उपभेद
- उपमानकर्मधारय समास
- उपमितकर्मधारय समास
- रूपककर्मधारय समास
उपमानकर्मधारय समास:
इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद , चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति , वचन और लिंग के होते हैं , इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :-
- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
उपमितकर्मधारय समास:
यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :
- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव ,
- नर सिंह के समान = नरसिंह।
रूपककर्मधारय समास:
जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है। जैसे :-
मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।
5. अव्ययीभाव समास (AvyayiBhav Samas)
अव्यय का अर्थ है जिसका व्यय न होता हो अर्थात जिसमें कोई परिवर्तन न होता हो, इस प्रकार के शब्दों को अव्यय शब्द कहते हैं। क्योंकि किसी वाक्य में प्रयोग होने के उपरांत ही किसी पद में परिवर्तन होता है तो ऐसे पद या ऐसे शब्द जिनका प्रयोग के समय परिवर्तन नहीं होता अव्यय शब्द कहलाते हैं।इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वह सदा एक जैसा रहता है।
जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो, अव्ययीभाव समास कहलाता है। यह वाक्य में क्रिया-विशेषण का कार्य करता है; जैसे-
- यथास्थान = स्थान के अनुसार
- आजीवन = जीवन-भर
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
- यथासमय = समय के अनुसार
- प्रतिदिन – प्रत्येक दिन में
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- बेखटके – बिना खटके के
- हाथोंहाथ – एक हाथ से दूसरे हाथ में
- भरपेट – पेट भरकर
- आजीवन – जीवन-पर्यंत
- ध्यानपूर्वक – ध्यान लगाकर
- अनुरुप – रूप के योग्य
- अजन्म – जन्म से लेकर
- गली-गली – प्रत्येक गली
- भरपूर – पूरा भरा हुआ
- यथोचित – जितना उचित हो
- रातोंरात – रात ही रात में
- हर घड़ी – प्रत्येक घड़ी या घड़ी-घड़ी
- प्रत्येक्ष – आँखों के सामने
- प्रतिवर्ष – हर-वर्ष या वर्ष-वर्ष
- द्वार-द्वार – हर एक द्वार
- यथानियम – नियम के अनुसार
- यथाविधि – विधि के अनुसार
- यथासाध्य – साध्य के अनुसार
- आमरण – मरण तक
- यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
- यथाक्रम = क्रम के अनुसार
- यथानियम = नियम के अनुसार
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
- प्रतिवर्ष =हर वर्ष
- आजन्म = जन्म से लेकर
- यथासाध्य = जितना साधा जा सके
- धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
- घर-घर = प्रत्येक घर
- रातों रात = रात ही रात में
- आमरण = म्रत्यु तक
- यथाकाम = इच्छानुसार
अर्थ के अनुसार अथवा अर्थ पर विशेष ध्यान देने पर हमें यह ज्ञात होता है कि यथा प्रति आदि पद जो पूर्व पद के रूप में प्रयुक्त हुए हैं इनका विशेष महत्व है। यदि उपर्युक्त उदाहरणों में से इन्हें हटा लिया जाए तो उस शब्द का अर्थ एकदम भिन्न हो जाता है। जैसे यथा स्थान में से यथा के हटा लेने पर जब केवल स्थान शेष रहता है तो उसका अर्थ एक सामान्य स्थान होता है। उसी प्रकार आजीवन में से आ हटा लेने पर केवल जीवन बचा रहता है जोकि जीवन भर जैसा अर्थ नहीं देता, बल्कि केवल जीवन का अर्थ देता है।
6. बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)
इस समास में अर्थ छुपा हुआ रहता है जो दिखाई देता है या प्रतीत होता है वह उसका अर्थ नहीं होता। बल्कि उसका अर्थ व्यंजित होता है अर्थात् उसका अर्थ गहराई में छुपा होता है। जैसे, कहीं पर तीर कहीं पर निशाना।बहुब्रीहि दो शब्दों के मेल से बना है। बहु + ब्रीहि = बहुब्रीहि जिसमे ‘बहु’ का अर्थ होगा ‘बहुत सारे अर्थों का’ और ‘ब्रीहि’ का अर्थ होगा ‘निषेध करने वाला’ अथार्त
बहुत सारे अर्थों का निषेध कर एक अर्थ को रखनेवाला समास को बहुब्रीहि समास कहते है।
जिस समास में दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध होता है, बहुव्रीहि समास कहलाता है; जैसे
- गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
- त्रिनेत्र =तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
- नीलकंठ =नीला है कंठ जिसका (शिव)
- लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
- दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
- चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
- पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
- चक्रधर=चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
- वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
- स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
- महात्मा = महान् आत्मा है जिसकी अर्थात् ऊँची आत्मा वाला।
- नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिनका अर्थात् शिवजी।
- लम्बोदर = लम्बा उदर है जिनका अर्थात् गणेशजी।
- गिरिधर = गिरि को धारण करने वाले अर्थात् श्रीकृष्ण।
- मक्खीचूस = बहुत कंजूस व्यक्ति
योगरूढ़ शब्दों में बहुब्रीहि समास होता है। जैसे
उपसर्ग- उपसर्ग + शब्द (अन + अंग = अनंग अन्य अर्थ कामदेव
प्रत्यय – शब्द + प्रत्यय (हल + धर = हलधर अन्य अर्थ बलराम
शब्द – शब्द + शब्द (नील + कंठ = नीलकंठ अन्य अर्थ शिव
जिस शब्द का अन्य अर्थ निकले वहाँ बहुब्रीहि समास होगा।
जिस शब्द का अन्य अर्थ नहीं निकले वहाँ बहुब्रीहि समास नहीं होगा है।
उदाहरण:
जिस भी शब्द के अंत ‘पाणी’ जुड़ा हो वहा बहुब्रीहि समास ही होगा।
- चक्रपाणी = विष्णु
- वीणापाणि = सरस्वती
- वेदपाणी = ब्रहमा
- गदापाणी = विष्णु
‘नीलांबर’ शब्द को छोड़कर जिस भी शब्द के अंत में ‘अंबर’ हो वहा बहुब्रीहि समास होगा।
- पीतांबर = विष्णु
- रक्तांबर = दुर्गा
- बाघांबर = शिव
- दिगंबर = शिव
‘बालवाहिनी’ और ‘रोगीवाहिनी’ को छोड़कर जिस भी शब्द के अंत में ‘वाहन’ या ‘वाहिनी’ आ जाए वहाँ बहुब्रीहि समास होगा।
- मयूरवाहन = कार्तिकेय
- मूषकवाहन = गणेश
- गरुड़वाहन = विष्णु
- उलूकवाहन = लक्ष्मी
- वृषभवाहन = शिव
- सिंहवाहिनी = दुर्गा
जिस भी शब्द के अंत में नयन, नेत्र, लोचन, अक्षि हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा
- त्रिलोचन = शिव
- त्रिनेत्र = शिव
- एकक्ष = शुक्राचार्य
- सस्त्राक्ष = इंद्र
- कमलनयन = विष्णु
जिस भी शब्द के अंत में धर, धरा और धि होगा वहाँ बहुब्रीहि समास होगा
- मुरलीधर = कृष्ण
- गिरिधर = कृष्ण
- गंगाधर = शिव
- वंशीधर = कृष्ण
- वसुंधरा = धरती
- चंद्रधर = शिव
- चक्रधर = विष्णु
- जिस भी शब्द के अंत में ज, जा जुड़ा हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा।
- जलज = कमल
- सरोज = कमल
- मनोज = कामदेव
- अग्रज = बड़ा भाई
- अनुज = छोटा भाई
- गिरिजा = पार्वती
- शैलजा = पार्वती
- सिंधुजा = लक्ष्मी
- भूमिजा = सीता
- अग्रजा = बड़ी बहन
- अनुजा = छोटी बहन
- जिस भी शब्द में ईश / पति हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा
- रजनीश ईश = रजनीश = चन्द्रमा
- सटी +ईश = सतीश = शिव
- खग + ईश = खगेश = गरुड़
- लंका +ईश = लंकेश = रावण
- गुडाका + ईश गुडाकेश = शिव अर्जुन
- रमा + ईश = रमेश = विष्णु
- कमला + ईश = कमलेश – विष्णु
- धन + ईश = धकेश = कुबेर
- वाक् + ईश= वागीश सरस्वती
- लंकापति = रावण
- द्वारकापति = कृष्ण
- उडुपति = चन्द्रमा
- रजनीपति – चन्द्रमा
- जिस भी शब्द में (उदर=पेट) जुड़ जाए वहाँ बहुब्रीहि समास होगा
- लंबा + उदर लंबोदर (गणेश)
- वृक +उदर = वृकोदर (भीम)
- काक +उदर = काकोदर (कृष्ण का पर्यायवाची)
- दाम + उदर = दामोदर (कृष्ण)
जिसमे भी ‘द’ (देनेवाले) और ‘दा’ (देनेवाली) प्रत्यय आ जाए वहाँ बहुब्रीहि समास होगा
जिसमे ‘कर’ प्रत्यय (करनेवाला) जुड़ा हो वहाँ बहुब्रीहि समास होगा
- दिनकर – सूर्य
- दिवाकर – सूर्य
- भा+कर = भास्कर (सूर्य)
- रजनीकर – चन्द्रमा
- प्रकयम = प्रलयंकर – शिव
बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद (Bahubrihi samas ke prakar/bhed)
- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
- व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
- तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
- व्यतिहार बहुब्रीहि समास
- प्रादी बहुब्रीहि समास
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास (Samanadhikaran bahuvrihi samas)
इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
- प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
- जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
- दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन
- निर्गत है धन जिससे = निर्धन
- नेक है नाम जिसका = नेकनाम
- सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
व्यधिकरण बहुब्रीहि समास (Vyadhikaran bahuvrihi samas)
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
- शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
- वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी
तुल्ययोग बहुब्रीहि समास (Tulog bahuvrihi samas)
जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।
इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है। जैसे –
- जो बल के साथ है = सबल
- जो देह के साथ है = सदेह
- जो परिवार के साथ है = सपरिवार
व्यतिहार बहुब्रीहि समास (Vyatihar bahuvrihi samas)
जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई। जैसे –
- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
- बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती
प्रादी बहुब्रीहि समास (Pradi bahuvrihi samas)
जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे-
- नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
- नहीं है जन जहाँ = निर्जन
अन्य विशेष समास और उनके उदाहरण-
संयोगमूलक समास (Sanyog moolak samas)
संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है। जैसे :
- माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।
आश्रयमूलक समास (Aashray moolak samas)
आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण,विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे –
- कच्चाकेला , शीशमहल , घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब , राजबहादुर।
वर्णनमूलक समास (Varn moolak samas)
इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं। जैसे-
- यथाशक्ति , प्रतिमास , घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य।
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TRICK:
Trick1
सरलता से सभी विभक्तियों को याद रखने के लिए एक व्यंग्यात्मक उदाहरण यह है-
कर्ता-ने
कर्म-को
करण-से/के द्वारा
सम्प्रदान-को/के लिए
अपादान-से
सम्बंध-का/की/के
अधिकरण-में/पर
सम्बोधन-हे/अरे
उदाहरण-सत्तू ने, केजरू को, नोटो द्वारा, जमीन सौदे के लिए, झोले से, दो करोड़ की रिश्वत, घर पर दी.
जिसे कपिल ने देखा व कहा अरे, मेरा हिस्सा किधर है?
TRICK2
समास को याद रखने की एक युक्ति:
इनके नाम चमत्कार के साथ इस श्लोक में कहे गए हैं–
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः ।
तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः ॥
इसका व्यंग्य अर्थ ऐसा है–‘मैं घर में द्वन्द्व (दो प्राणी, स्त्री-पुरुष) हूँ । द्विगु हूँ (दो बैल मेरे पास हैं ) । मेरे घर में नित्य अव्ययी-भाव रहता है (खरचा नहीं चलता ) । तत्पुरुष (इसलिए हे पुरुष महाशय) कर्मधारय (ऐसा काम करो) जिससे मैं बहुव्रीहि (अधिक अन्नवाला) हो जाऊँ ।’ व्यंग्यार्थ के द्वारा छः समासों के नाम भी बतलाए गए हैं ।
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Google Questions:-
- समास किसे कहते हैं और उसके कितने भेद होते हैं?
समास शब्द-रचना की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर भिन्न तथा स्वतंत्र अर्थ रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं। समास विग्रह सामासिक शब्दों को विभक्ति सहित पृथक करके उनके संबंधों को स्पष्ट करने की प्रक्रिया है। यह समास रचना से पूर्ण रूप से विपरित प्रक्रिया है।
अव्ययी भाव समास, तत्पुरुष समास, कर्मधारय समास, द्विगु समास, द्वन्द्व समास और बहुव्रीहि समास यह समास के ६ भेद हैं।
- समास क्या है हिंदी में?
समास शब्द-रचना की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर भिन्न तथा स्वतंत्र अर्थ रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं। समास विग्रह सामासिक शब्दों को विभक्ति सहित पृथक करके उनके संबंधों को स्पष्ट करने की प्रक्रिया है। यह समास रचना से पूर्ण रूप से विपरित प्रक्रिया है।
- 80 में कौन सा समास है?
इतरेतर द्वंद्व समास में ऐसे संख्यावाची शब्दों का प्रयोग होता है। 1 से 10 तथा 10 से भाज्य संख्याओं (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100) को छोड़कर अन्य समस्त संख्यावाची शब्दों को द्वंद्व समास माना जाता है, क्योंकि इनमे दो संख्याओं का मेल होता है।
- महादेव में कौन सा समास है?
महान है जो देव अर्थात महादेव। यह बहुब्रीहि समास का उदाहरण है।
समास की परिभाषा
अलग अर्थ रखने वाले दो शब्दों या पदों (पूर्वपद तथा उत्तरपद) के मेल से बना तीसरा नया शब्द या पद समास या समस्त पद कहलाता है तथा वह प्रक्रिया जिसके द्वारा ‘समस्त पद’ बनता है, समास-प्रक्रिया कही जाती है।
- बहुव्रीहि समास क्या होता है?
जिस समास में कोई पद प्रधान न होकर (दिए गए पदों में) किसी अन्य पद की प्रधानता होती है। यह अपने पदों से भिन्न किसी विशेष संज्ञा का विशेषण है।
- अव्ययीभाव समास की पहचान क्या है?
अव्ययीभाव समास में प्रथम पद प्रधान रहता है और सामासिक पद अव्यय होता है. अव्ययीभाव समास के प्रथम पद में अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं. अतः अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए इन्हीं प्रथम पद अव्यय देखने के साथ-साथ अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर इत्यादि शब्दों को भी देखना चाहिए।
तत्पुरुष समास की पहचान क्या है?
- तत्पुरुष समास का उदाहरण कौन सा है?
जिस सामासिक शब्द का उत्तर पद प्रधान होता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। इसमें दोनों पदों के मध्य आने वाले परसर्गों (के लिए, को, से, के द्वारा, का, के, की, में, पर) का लोप हो जाता है। जिस समस्त पद का उत्तरपद प्रधान होता है अर्थात दूसरा शब्द प्रधान होता है वहां तत्पुरुष समास माना जाता है।
- रेल गाड़ी में कौन सा समास है?
रेलगाड़ी शब्द में अधिकरण तत्पुरुष समास होता है।
- 25 में समास कौन सा है?
पच्चीस में कौन सा समास है ? , पच्चीस का समास-विग्रह क्या है?
समस्त पद | समास विग्रह | समास का प्रकार |
पच्चीस | पाँच और बीस | द्वंद्व समास |
- कर्मधारय समास का उदाहरण कौन सा है?
कर्मधारय समास के उदाहरण (Karmadharaya Samas Ke Udaharan)
जैसे: लाल-लाल, काला-काला, सफ़ेद-झक्क, नीला-भक्क इत्यादि।
- द्वंद्व समास का उदाहरण कौन सा है?
जिस समास में दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर उनके बीच ‘तथा’, ‘या’, ‘अथवा’, ‘एवं’ या ‘और’ का प्रयोग होता हो। जैसे – अन्न और जल = अन्न-जल, अपना और पराया = अपना-पराया।
- नर और नारी में कौन सा समास है?
दिए गए विकल्पों में से ‘नर-नारी’ द्वंद्व समास है, जिस समास के दोनों पद प्रधान हो उसे द्वंद्व समास कहते है। जैसे – माता-पिता, नर-नारी।
- बाढ़पीड़ित कौन सा समास है?
बाढ़ पीड़ित शब्द में करण तत्पुरुष समास होता है।
- सरस्वती में कौन सा समास है?
श्वेत है अंबर जिसके अर्थात सरस्वती जी में बहुब्रीहि समास का विकल्प सही है। बहुव्रीहि समास कहलाता है।
- लोकसभा में कौन सा समास है?
Ans. लोकसभा शब्द में बहुव्रीहि समास होता है।
- कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में क्या अन्तर है?
- कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अन्तर
कर्मधारय समास में विशेषण और विशेष्य अथवा उपमेय और उपमान का सम्बन्ध होता है जबकि बहुव्रीही समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करती है।
उदाहरण-
- नीलकंठ नीला है जो कंठ (कर्मधारय समास )
- नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव (बहुव्रीही)
- पीताम्बर पीला है जो अम्बर (कर्मधारय)
- पीताम्बर पीला है अम्बर जिसका अर्थात् कृष्ण (बहुव्रीहि)
- कर्मधारय समास और द्विगु समास में क्या अन्तर है?
कर्मधारय समास में समस्तपद का एक पद गुणवाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है जबकि द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है।
समस्त पद विग्रह
- नीलाम्बर नीला है जो अम्बर (कर्मधारय)
- पंचवटी पाँच वटों का समाहार (द्विगु)
द्विगु समास और बहुव्रीहि समास में क्या अन्तर है ?
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीही समास में पूरा पद ही विशेषण का काम करता है।
उदाहरण-
समस्त पद विग्रह
- त्रिनेत्र तीन नेत्रों का समूह (द्विगु समास)
- त्रिनेत्र तीन नेत्र है जिसके अर्थात् (बहुव्रीहि)
- पूर्वपद और उत्तरपद से क्या तात्पर्य है ? (Pre and Post Compound)
समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पूर्वपद’कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद’कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
जैसे-
पूजाघर (समस्तपद) – पूजा (पूर्वपद) + घर (उत्तरपद) – पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र (समस्तपद) – राजा (पूर्वपद) + पुत्र (उत्तरपद) – राजा का पुत्र (समास-विग्रह)
- समास और संधि में क्या अंतर है?
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है – मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं, इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है, उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।
जैसे –
पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।
समास का शाब्दिक अर्थ होता है – संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।
जैसे –
विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में क्या अंतर है?
कर्मधारय samas में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है और इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है।
जैसे – नीलकंठ- नीला कंठ।
वहीं बहुव्रीहि samas में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है।
जैसे- नील+कंठ- नीला है कंठ जिसका अथार्त शिव।
PDF Download Link for Samas, types of samas and examples.
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